गुरुवार, 30 जुलाई 2020

राजस्थान के प्रमुख संत एवं सम्प्रदाय, राजस्थान के महान संत

       राजस्थान के प्रमुख संत 

1. संत मीराबाई -

➨   मीराबाई का जन्म सन 1498 मे कुड़की रियासत के                   बाजोली ग्राम (पाली) में हुआ था !

↠  मीरा स्त्री मुक्ति की प्रथम आवाज मानी जाती थी !

↠  संत शिरोमणि मीराबाई किसी संत संप्रदाय में दीक्षित नहीं थी         अपितु स्वयं एक संप्रदाय थी !

↠ मीराबाई जोधपुर नगर के संस्थापक राव जोधा जी के चतुर्थ        पुत्र राव दूदा जी (1497-1572)की पोत्री थी ! राव दूदा           परम वैष्णव भगत थे उनकी सानिध्य न हीं मीरा के बाल हृदय       में भक्ति-भावना के बीज बोए थे !

सन 1572 ने मीरा के दादा राव दूदा का स्वर्गवास हो गया और उनके स्थान पर रतन सिंह के सबसे बड़े भाई वीरमदेव (सम्वत 1534 - 1600) गद्दी पर बैठे !  उन्होंने संवत् 1573 कि अक्षय तृतीया के दिन मीरा का विवाह चित्तौड़ के सिसोदिया वंश राणा सांगा के जेष्ठ पुत्र भोजराज के साथ कर दिया लेकिन सात आठ वर्ष बाद ही संवत 1580 में भोजराज का देहांत हो गया इसी दौरान सम्वत 1585 में राणा सांगा घायल होकर व मीरा के पिता रतन सिंह खानवा के युद्ध में मारे गए और मीरा आश्रयहीन हो गई !

↠ मीरा के कष्टों की कथा सुनकर उनके पितृव्य वीरमदेव ने               (संवत  1588 - 1589) उन्हें मेड़ता बुला लिया ! मेड़ता में      वीरमदेव और उनके पुत्र जयमल मीरा का बहुत सम्मान करते थे !   मीरा मेड़ता आते वक्त अपने आराध्य की मूर्ति लेती आई थी ! वह सदैव उसी की पूजा अर्चना में लगी थी, किंतु वे अधिक समय मेड़ता में नहीं रह सकी !संवत 1595 में जोधपुर के राव मालदेव ने वीरमदेव से मेड़ता सीन लिया तब मेरा तीर्थाटन को निकल गई ! 

 पहले  वृंदावन गयी  वहा उन्होंने चैतन्य संप्रदाय के श्री जीव     गोस्वामी से भेंट की ! इसके बाद वहां से द्वारिका चली गई ! वहां उन्हें मेवाड़ के तत्कालीन राणा के ब्राह्मणों द्वारा घर लौट चलने का निमंत्रण मिला कहा जाता है कि वह घर चलने के लिए जहा ' रणछोड़ जी ' से आज्ञा लेने गई तो वे मूर्ति में ही समा गई !

↠मीरा के बारे में यह कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के साथ उनका पत्र व्यवहार हुआ था और वे रैदास की शिष्य थी यह भी कहा जाता है कि वह श्री चैतन्य महाप्रभु कि भी  शिष्या थी 

मीरा की प्रमुख रचनाओं में -
    1. नरसी जी रो माहरा               2. गीत गोविंद की टीका
    3. राग गोविंद                         4. सोरठ के पद
    5. मीराबाई का मलार               6. गर्वा गीत
    7. फुटकर पद

↠ मीरा की भाषा में राजस्थानी, गुजराती, ब्रज के अतिरिक्त उर्दू, फारसी, अरबी, पंजाबी और पूर्वी भाषा के शब्द भी पाए जाते हैं !



2. संत पीपा जी (1425 - 1485 ई.) -

↠ रामानंदी संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामानंद जी के प्रमुख           शिष्यों में संत पीपा जी का नाम आता है !

↠ इनका जन्म स्थान राजस्थान के वर्तमान झालावाड़ जिले में         स्थित गागरोन गढ़ के ऐश्वर्य संपन्न परिवार में संवत 1482           में हुआ था इनके बचपन का नाम प्रताप सिंह था !

↠ दर्जी समुदाय इन्हे अपना आराध्य मानता हैं !

↠ बाड़मेर के समदड़ी ग्राम में पीपा जी का भव्य मंदिर है                 जहां विशाल मेला लगता है !

↠ संत पीपा जी कुछ समय टोढा ग्राम (टोंक) में भी रहे जहां             पीपा जी की गुफा है जिसमें वह भजन किया करते थे !

↠ इनके समकालीन रामानंद जी के दूसरे प्रमुख शिष्य टोंक               के धन्नाभगत  हुए हैं !

↠ संत पीपा जी ने जाति-पांति, ऊंच-नीच, संप्रदायवाद भेदभावो की कटु आलोचना की एवं निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने ईश्वर प्राप्ति हेतु गुरु की अनिवार्यता एवं भक्ति की मोक्ष प्राप्ति का साधन बनाने का उपदेश दिया !

राजस्थान में भक्ति आंदोलन का अलख जगाने वाले         यह प्रथम संत थे !



3. संत धन्ना भगत -

↠ रामानंदी परंपरा में राजस्थान के टोंक जिले के गांव          धुवन में संवत 1472 में संत धन्ना भगत का जन्म हुआ


 यह संत रामानंद से दीक्षा लेकर धर्म उपदेश एव भगवत भक्ति का प्रचार करने लगे ! संग्रह वर्ति से मुक्त रहते हुए संतो की सेवा, ईश्वर मे दृढ़ विश्वास तथा बाहरी आडंबरो व कर्म कांडो का विरोध आदि इनके प्रमुख उपदेश है !


साहित्य:- धन्ना जी के चार पद गुरु अर्जुन देव द्वारा संपादित 'आदि ग्रंथ ' में संग्रहित है !



4. संत जाम्भोजी -

↠ विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्तक संत जांभोजी का जन्म जोधपुर राज्य के नागौर प्रदेश के पीपासर नामक ग्राम में भाद्रपद कृष्ण 8 सम्वत 1508 (1451 ई.) को पंवार (क्षत्रिय) कुल मे माता हंसा (केशर) पिता लोहट जी के घर हुआ था !

↠ इन्हे गुरु गोरखनाथ जी से दीक्षा प्राप्त हुई थी !

संवत 1542 में उन्होंने बिश्नोई पंथ की स्थापना की और       अपने पंथ का नाम प्रहलाद पंथी बिश्नोई रखा !

↠ इनके द्वारा जम्भ संहिता, जम्भ सागर, शब्दवाणी और बिश्नोई धर्म प्रकाश आदि धर्म ग्रंथों की रचना की गई !

↠ इनके द्वारा रचित 120 शब्द वाणीया भी संग्रहित है !

↠ इनसे संबंधित 6 देवालय हैं -

    (1) पीपासर - नागौर जिले मे, जहाँ इनका जन्म हुआ !

    (2) मुक्ति धाम मुकाम - बीकानेर के नोखा तहसील मे                  मुकाम नामक स्थान पर समाधी ली !

    (3) लालासर - बीकानेर जिले मे स्थित लालासर मे जाम्भोजी को निर्वाण प्राप्त हुआ !

    (4) रामड़ावास - जोधपुर जिले के पीपाड़ के समीप रामड़ावास तथा लोहावट स्थानों पर जांभोजी ने उपदेश 

    (5) जाम्भा - फलोदी तहसील में स्थित जाम्भा गांव विश्नोई संप्रदाय के लिए पुष्कर की तरह पवित्र तीर्थ स्थल है जहां मेला भरता है !

    (6) जागुल - नोखा तहसील के जागूल गांव में मेला भरता 

↠ समराथल, बीकानेर जहां जांभोजी के द्वारा विश्नोई संप्रदाय      की स्थापना की गई को "धोक-धोरा'' के नाम से जाना जाता है !



(5) संत जसनाथ जी -

↠ श्री जसनाथ जी का जन्म बीकानेर में कतरियासर नामक         ग्राम के निवासी श्री हमीर के यहां हुआ था !

संप्रदाय की मान्यता अनुसार संवत 1551 में गुरु                   गोरखनाथ ने जसनाथ को दीक्षा प्रदान की थी उन्होंने             बालक जसवंत को दीक्षा के बाद जसनाथ नाम दिया था !


↠ इनकी साधना-स्थली "गोरखमालिया" नाम से प्रसिद्ध हैं!       इस संप्रदाय का मुख्य ग्रंथ "यशोनाथ पुराण" माना               जाता है !

↠ साहित्य - जसनाथ जी की तीन रचनाओं का उल्लेख                            मिलता है !
                 (1) गोरख छंद
                 (2) झंआडाौ 
                 (3) शिंभूदड़ा 



(6) संत लालदास -

- संत लाल दास जी का जन्म संवत 1597 में अलवर के पास            धोलीदुब नामक ग्राम में हुआ था !

- इनकी माता का नाम समदा पिता का नाम चांदमल था !

- लालदास जी ने तिजारा के मुस्लिम संत गदेनशाह चिश्ती से दीक्षा ली थी !

- लालदास जी हिंदू मुस्लिम दोनों को ही समान भाव से परमार्थिक      एवं पारलौकिक जीवन के उपदेश दिए !

- लालदास जी, "लालदासी संप्रदाय" के संस्थापक थे !

- लालदासी संप्रदाय के उपदेश " वाणी " नामक ग्रंथ में संग्रहित है!

- अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने नगला (भरतपुर) में निवास किया इसके उपरांत उन्हें शेरपुर ग्राम में समाधिस्थ किया गया !



(7) संत हरिदास निरंजनी -

- निरंजनी संप्रदाय के प्रवर्तक संत हरिदास जी को माना जाता है     इस पंथ का मूल उद्गमस्थान नाथ पंथ हैं !

- इनका जन्म डीडवाना के कोपड़ोद गांव में हुआ यह जाति से         सांखला क्षत्रिय थे ! और इनका मूल नाम हरि सिंह था !

- वे पहले प्रयागदास के शिष्य हुए फिर दादू दयाल के फिर कबीर    पंथ और फिर गोरख पंत में सम्वत 1556 में दीक्षित हुए !

- हरिदास जी ने निर्गुण भक्ति का उपदेश देकर निरंजनी संप्रदाय     चलाया !

- इनके उपदेश मंत्र राज प्रकाश तथा हरि पुरुष जी की वाणी मे       संग्रहित है !

- इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ भक्त विरुदावली, भरथरी संवाद,      साखी है !

- गाढ़ा धाम नागौर की डीडवाना तहसील के गांव में हरिदास जी ने समाधि ग्रहण की !



(8) संत दादूदयाल जी -

- संत दादू दयाल का जन्म फाल्गुन सुदी दूज गुरुवार संवत 1601 को माना जाता है गुजरात के अहमदाबाद शहर में धुनिया जाति में इनका जन्म हुआ था !

- लगभग 30 वर्ष की आयु में वे सांभर (राजस्थान)आकर रहने लगे यहीं पर उन्होंने बर्ह्म संप्रदाय की स्थापना की यही संप्रदाय आगे जाकर परब्रह्मा संप्रदाय कहा जाने लगा फिर यही दादू पंथ नाम से प्रसिद्ध हुआ !

- संत दादू दयाल जी यह निर्गुण निराकार भक्ति धारा के संत थे !

- दादू पंथ के सत्संग स्थल "अलक दरीबा"कहलाते हैं !

- दादू जी के उपदेशों बेलेकन की भाषा सरल हिंदी मिश्रित        सधुखड़ी थी !

- दादूखोल (दादुपालकी) - नरेना में भैराणा पहाड़ी पर स्थित गुफा जहां दादू ने समाधि ली थी !

- नरेना दादू पंथियो की प्रदान गद्दी है जो जयपुर जिले में स्थित हैं!

- दादूपंथी चार प्रकार के होते हैं -

  1. खलसा - गरीब दास जी की आचार्य परंपरा से संबंध साधु
  2. बिरक - घूमते फिरते ग्रंथियों को दादू धर्म का उपदेश देने वाले                     साधु
  3. उत्तरादे व स्थानधारी - जो राजस्थान छोड़कर उत्तरी भारत                                           में चले गए साधु
  4.खाकी - जो शरीर पर भस्म लगाते हैं वह जटा रखते हैं इसके          अलावा इनमें नागा साधु भी होते हैं !

- संत दादू जी की शिष्य परंपरा में 152 शिष्य माने जाते हैं जिनमें      52 प्रमुख शिष्य अब 52 स्तंभ कहलाते हैं !

- दादू जी के काव्य रूपी उपदेश "दादू जी री वाणी" व "दादू जी      रा दोहा" में संग्रहित है !



(9) संत रामचरण जी -

- संत राम चरण जी रामसनेही मत के संस्थापक थे इनका जन्म 1718 ईस्वी में वर्तमान टोंक जिले के सोडा ग्राम में हुआ इनका बचपन का नाम रामकिशन था तथा पिता का नाम बख्तराम था माता का नाम देऊजी तथा पत्नी गुलाब कंवर थी !

- इनके गुरु कृपाराम जी महाराज से दीक्षा लेकर उनका नाम          रामकिशन से बदलकर रामचरण कर दिया !

- संत रामचरण जी ने शाहूपूरा गद्दी की स्थापना कर रामसनेही   संप्रदाय की राजस्थान में नींव रखी यह राम सनेही संप्रदाय की     शाहपुरा शाखा प्रधान पीठ के प्रवर्तक थे !

 - रामचरण जी के उपदेश "अन्नभवाणी" " आनाभाई वेणी" नामक ग्रंथ में संग्रहित है!

- इनके अनुयायी  गुलाबी वस्त्र धारण करते हैं !

- रामस्नेही संप्रदाय की राजस्थान में चार पीठे हैं -
  1. शाहपुरा पीठ - इसकी नींव स्वयं रामचरण जी ने डाली थी (                               यह प्रधान पीठ है)
  2. रेण (मेड़ता) - इसके संस्थापक दरियाव जी थे!
  3. खेड़ापा (जोधपुर) - इनके संस्थापक रामदास जी थे !
  4. सिंहथल (बीकानेर) - इसके संस्थापक संत हरिदास जी थे !

- रामस्नेही संप्रदाय में निर्गुण भक्ति तथा सगुण भक्ति की रामधुनी एवं भजन कीर्तन की परंपरा के समन्वय से निर्गुण निराकार परमब्रह्मा राम की उपासना की जाती है !

- रामद्वारा - रामस्नेही संप्रदाय का प्रार्थना स्थल

- वैशाख कृष्ण पंचमी गुरुवार विक्रम संवत 1855 (5 अप्रैल 1997) को रामचरण महाराज शाहपुरा (भीलवाड़ा) में महानिर्वाण प्राप्त किया है !

- होली के दूसरे दिन चैत्र कृष्णा एकम से चेत्र कृष्णा पंचम तक    फूलडोल का मेला लगता है !



(10) आचार्य तुलसी -

- जैन श्वेतांबर के तेहरा पंथ संप्रदाय के आचार्य श्री तुलसी जी ने 
  "अणुव्रत" का सिद्धांत प्रतिपादित किया !



(11) आचार्य महाप्रज्ञ -

- आचार्य महाप्रज्ञ ने "प्रेक्षाध्यान" का सिद्धांत प्रतिपादित किया !





















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